अहिल्याबाई होल्कर ने भारत में सांस्कृतिक एकता का परचम लहराया, सामाजिक परिवर्तन की रही वाहक: मनोज कुमार


लखनऊ। अखिल भारतीय साहित्य परिषद अवध प्रान्त की ओर से मंगलवार को हिन्दी संस्थान के मुंशी प्रेमचन्द्र सभागार में 'अहिल्या बाई होल्कर का जीवन दर्शन' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मनोज कुमार ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर सामाजिक परिवर्तन की वाहक रहीं। उन्होंने घुमन्तू समाज के उत्थान के लिए काम किया। भीलों के लिए भील कौड़ी की शुरूआत की और उन्हें कृषि के लिए प्रेरित किया। वह युद्ध क्षेत्र में स्वयं जाकर सैनिकों का उत्साह बढ़ाती थी। महिलाओं की सेना का गठन किया। राज्य की आय कैसे बढ़ सकती है इसके लिए आर्थिक सुधार किये। महारानी ने उद्योग,व्यापार व आर्थिक उन्नति का ढ़ांचा तैयार किया। 

सह संगठन मंत्री ने कहा कि संत स्वरूपा पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर साक्षात देवी थीं। संत जैसा जीवन जीते हुए उन्होंने साधना के साथ शासन किया। उनकी राजाज्ञाओं पर ‘श्री शंकर आज्ञा’ लिखा रहता था। गायों को चरने के लिए भूमि खाली छोड़ने और पक्षिओं व मछलियों के लिए दाना डालने की व्यवस्था थी। अहिल्याबाई सर्वभूत हिते रत: अर्थात सबके कल्याण के लिए वह काम करती थी। इसलिए पूरी प्रजा उन्हें माँ मानती थी। इसलिए वह लोकमाता कहलायीं। सांस्कृतिक पुनरूत्थान की दृष्टि से देखें तो उन्होंने मुगल साम्राज्य के कारण ध्वस्त हो चुके तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण कराया। 

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सुशील चन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि मुगल साम्राज्य के विपरीत छोटे राज्य बनाकर संघर्ष करके अहिल्या बाई होलकर जी ने देश में सांस्कृतिक एकता का परचम लहराया। श्री त्रिवेदी ने कहा पिछले 2000 वर्षो में देश मे सांस्कृतिक एकता के लिए अहिल्या बाई जी  ने सर्वाधिक कार्य किए । श्री त्रिवेदी ने कहा  सनातन को व भारतीयता को छोटे में नही लेना है और समाज मे सिद्धि लाने के लिए मिलना होगा तब भारत स्वयं सिद्ध हो जायेगा।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डा.पवन पुत्र बादल ने कहा कि रिश्तों की सुगंध केवल भारत में ही मिलती है। भारत की कुटुम्ब परम्परा को तोड़ने के लिए षड़यंत्र हो रहे हैं। भारत की परिवार व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए नायक-नायिकाओं के सीरियल बनाये जा रहे हैं। डा.पवन पुत्र बादल ने कहा कि हमें भविष्य की पीढ़ी को अपनी परम्परा व संस्कृति से जोड़कर रखना है। 

इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष विजय त्रिपाठी,प्रान्त महामंत्री द्वारिका प्रसाद रस्तोगी, प्रान्त सह मंत्री डा.बलजीत कुमार श्रीवास्तव,सुशील श्रीवास्तव प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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