बिहार में मोदी के चेहरे पर NDA का सारा दारोमदार, पर क्या नीतीश फिर बन सकेंगे दमदार


  • मधुरेन्द्र श्रीवास्तव
बिहार में अगले कुछ महीनों में राज्य विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। अभी राज्य में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन (SIR) को लेकर विपक्षी दलों के निशाने पर चुनाव आयोग है। राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी हायतौबा मची हुई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के नाम पर चुनाव आयोग मौजूदा गठबंधन की राह आसन करने का काम कर रहा है। बिहार के राजनीतिक हालात पर नजर डालें तो यह साफ है कि जनता दल यूनाइटेड के एकमात्र बड़े नेता और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रासंगिक बने हुए हैं। नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र और राज्य के सियासी दांवपेंच के बीच जदयू की ताकत कम जरूर हुई है, पर उसे चुनावी समर में कमजोर आंकना भारी भूल होगी। 

इन सबके बीच नीतीश के साथ गठबंधन की सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी काफी समय से प्रयासरत है कि राज्य की सियासत में उसका प्रमुख स्थान बने किंतु प्रभावी चेहरे की कमी उसे बिहार में खड़ा होने की ताकत नहीं दे पा रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां भाजपा को दमदार स्थिति में लाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। और इस बार के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का प्रमुख चेहरा होंगे, पर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती NDA के घटक दलों को चुनाव में एकजुट होकर महागठबंधन से निपटाने की रणनीति को अंजाम तक पहुंचाते हुए सत्ता हासिल करने की होगी।

नीतीश को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं

राज्य के मौजूदा हालात पर नजर डालें तो यह साफ होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बिहार क्यों एक महत्वपूर्ण राज्य बना हुआ है। मोदी के लिए बिहार सत्ता की कुंजी ही नहीं है बल्कि दिल्ली के सत्ता महामार्ग का एक ऐसा प्रमुख राज्य है, जहां से लोकसभा की 40 सीटें आती हैं। बिहार में नीतीश के साथ बने हुए भाजपा नेता यह जरूर कह रहे हैं कि चुनाव बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे, पर अभी तक इसमें कई बार किंतु-परंतु का पुट भी देखने को मिला है। फिलहाल प्रधानमंत्री की लगातार रैलियों और सक्रियता से यह स्पष्ट है कि असली चेहरा मोदी ही होंगे। इस सबके बीच राज्य के अगले मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे, इसको लेकर जदयू के नेता तक मुतमईन नहीं हैं। फिलहाल राज्य में मोदी की रैलियां और सभाए जारी हैं और भाजपा अपने एजेंडे को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति को धार देने में जुटी हुई है।

चुनावी समीकरण

बिहार में विधानसभा चुनाव पर राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि यह चुनाव न केवल राज्य के भविष्य को तय करेगा, बल्कि इसका असर पूरे देश पर भी पड़ेगा। मोदी के नेतृत्व में एनडीए का बिहार में लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन रहा है, और भाजपा आज बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 110 विधानसभा सीटों पर लड़ी थी, जबकि जदयू ने 115 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। चुनाव नतीजे जदयू के अनुकूल नहीं रहे और उसे मात्र 42  सीटें ही मिलीं। भारतीय जनता पार्टी ने 74 सीटों पर जीत हासिल की थी। जदयू के इस हालत की प्रमुख वजह लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान का रवैया माना गया था। हालांकि बाद में चिराग पासवान NDA में अलग-थलग पड़ गए। उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस ने अपने बड़े भाई रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी पर कब्जा कर लिया और मोदी सरकार में मंत्री भी बने।

चिराग पासवान के लिए वह समय काफी बुरा साबित हुआ लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और अपने पिता रामविलास पासवान के नाम के साथ बिहार में अपनी पार्टी को प्रभावी स्थिति लाने में कामयाबी हासिल की। पिछले लोकसभा चुनाव में चिराग NDA का हिस्सा थे और उन्होंने राज्य में पांच लोकसभा सीटें जीतीं। चिराग खुद तो हाजीपुर लोकसभा सीट से जीते ही, उनके बहनोई ने भी जीत हासिल की और नीतीश के करीबी मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी भी चिराग की पार्टी से सांसद बनीं। अगले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह कर NDA में बेचैनी फैलाए हुए हैं। NDA के बिहार में एक और साथी जीतन राम मांझी भी अपनी पार्टी 'हम' के लिए और व्यापक संभावनाएं तलाश रहे हैं। वैसे मांझी के एनडीए छोड़कर जाने की उम्मीद बेहद कम है।

विपक्ष की स्थिति

विपक्ष की बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पिछले विधानसभा चुनाव में 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 72 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बाद में RJD ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के सीमांचल से जीते 5 विधायकों में से चार को अपने पाले में कर लिया था। RJD के पास अभी 77 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 19, जबकि भाकपा माले के पास 11 विधायक हैं। कांग्रेस और भाकपा माले RJD के महागठबंधन के साथी हैं। इस बार के चुनाव में इनके साथ विकासशील इंसान पार्टी (VIP) भी चुनाव लड़ने का मन बनाए हुए है। VIP के पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी तो डिप्टी सीएम तक का सपना देख रहे हैं। वैसे सहनी पिछले विधानसभा चुनाव में NDA के साथ थे। 11 सीटों पर चुनाव लड़कर उन्होंने चार सीटें जीती थीं। बाद में भाजपा ने इनके विधायकों को अपने साथ कर लिया था।

NDA की रणनीति

NDA ने कुछ समय पहले नीतीश कैबिनेट में विस्तार किया, जिसमें 7 नए चेहरों को जगह दी गई। यह विस्तार जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है, जिसमें जीवेश मिश्रा (भूमिहार), राजू सिंह (राजपूत), संजय सरावगी (वैश्य), कृष्ण कुमार मंटू (कुर्मी), विजय मंडल (केवट), सुनील कुमार (कुशवाहा), और मोतीलाल प्रसाद (तेली) शामिल हैं। NDA सभी जातियों के वोट बैंक को साधते हुए बिहार के इस विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने का इरादा रखती है। इसमें भी भाजपा बड़े मंसूबे के साथ काम कर रही है। उसका इरादा बड़े अंतर के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने का है। कोशिश, सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखने की है।

अब देखना यह है कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में कौन सा गठबंधन जीत दर्ज करेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी के चेहरे के बल पर भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है लेकिन विपक्ष भी अपनी रणनीति को मजबूत कर रहा है। यह चुनाव न केवल बिहार के भविष्य को तय करेगा बल्कि इसका असर पूरे देश की राजनीति पर भी पड़ेगा। यह चुनाव राज्य में चिराग पासवान की स्थिति को भी साफ कर देगा। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान 'मोदी का हनुमान' बनाकर नीतीश की पार्टी की संख्या कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चिराग के राजनीति करने के तौर तरीके को राज्य की जनता कितना पसंद करती है, यह भी साफ हो जाएगा। RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सियासी उत्तराधिकारी के रूप में तेजी से आगे बढ़ रहे तेजस्वी यादव के भविष्य के लिए भी आगामी विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। राज्य की सियासत में पिछलग्गू के बजाय आगे बढ़कर कमान संभालने की कोशिश में जुटी कांग्रेस वाकई कुछ कर पाती है या नहीं, यह भी चुनाव में साफ हो जाएगा। ओवैसी की एआईएमआईएम इस बार कुछ आगे बढ़कर प्रदर्शन करती है तो बिहार में कई राजनीतिक दलों के समीकरण बिगड़ना तय हैं।


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