झारखंड की सियासत में पूर्व CM सोरेन का 'धमाका', CM हेमंत सोरेन की परेशानी बढ़ी, भाजपा में जाएंगे चम्पाई सोरेन?

नई दिल्ली। झारखंड की सियासत रविवार को 360 डिग्री का टर्न लेती दिखी। राज्य की सियासत में अभी कुछ समय पहले तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने सोशल मीडिया X पर शाम को लंबी-चौड़ी पोस्ट लिखकर सियासी 'धमाका' कर दिया। यह धमाका यकीनन झामुमो प्रमुख व राज्य के CM हेमंत सोरेन की परेशानी बढ़ाने वाला है। इसी के साथ यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या चम्पाई सोरेन भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं?

झारखंड में जल्दी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उम्मीद तो जम्मू और कश्मीर व हरियाणा के विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही इस राज्य में भी मतदान कराने की हो रही थी, पर भारत निर्वाचन आयोग ने अभी यहां पर चुनाव तुरंत नहीं कराने का फैसला किया है। उम्मीद की जा रही है कि झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव जल्द ही एक साथ कराने का ऐलान चुनाव आयोग करेगा।

ED की कार्रवाई के बाद हेमंत सोरेन को गिरफ्तार होने के कारण झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हेमंत सोरेन ने अपनी जगह पर चम्पाई सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बनवा कर झारखंड में झामुमो की सरकार सहयोगियों के साथ बनाए रखी थी। ईडी के आरोपों के अदालत में मजबूती से नहीं टिक पाने के कारण हेमंत सोरेन को जमानत मिली और वह बाहर आए। इसी के साथ झारखंड की राजनीति में हेमंत सोरेन के फिर सीएम बनने की बात उठने लगी और जल्द ही हेमंत सोरेन ने चम्पाई सोरेन की जगह पर राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर कमान पुनः संभाल ली। 

चम्पाई सोरेन को लेकर इसके बाद से कयास तो कई लगाए जा रहे थे परंतु उनकी तरफ से इस पर बरती जा रही खामोशी से तस्वीर साफ नहीं हो रही थी। 18 अगस्त को उन्होंने अपनी पोस्ट लिखकर दर्द-ए-दिल का जिस तरह से इज़हार किया है, उससे लगता है कि झामुमो और राज्य में झारखंड के टाइगर के नाम से मशहूर चम्पाई सोरेन जल्द ही अपने तरकश से और भी तीर चलाएंगे। उन्होंने अपने X हैंडल से पार्टी का नाम भी हटा दिया है।

चम्पाई सोरेन का दर्द-ए-दिल 

जोहार साथियों,

आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। 

अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।

जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। 

इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।

पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? 

जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते। 

कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। 

पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।

मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि - "आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।" इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना।

उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं। 

एक बात और, यह मेरा निजी संघर्ष है इसलिए इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने अथवा संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते। 

लेकिन, हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि...

आपका,

चम्पाई सोरेन



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