आजमगढ़ व रामपुर उपचुनाव : सीट बची न साख, अखिलेश की ‘रण’ जीतने की रणनीति पर भारी पड़ा योगी का कौशल


  • बीएसपी सुप्रीमो मायावती की सपा को ध्वस्त करने के लिए खेले गए दांव की काट भी सपाई दिग्गज नहीं ढूंढ पाए

लखनऊ। मधुरेन्द्र श्रीवास्तव 

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 02 सीटों के उपचुनाव में अपने ही गढ़ में मुंह के बल गिरी समाजवादी पार्टी आजमगढ़ और रामपुर की न सीट बचा सकी और न ही अपनी पार्टी की साख। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की उपचुनाव के ‘रण’ से दूरी बनाकर ट्वीटर के जरिये मतदाताओं को साधने की रणनीति पर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का कौशल भारी पड़ा। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती की सपा को ध्वस्त करने के लिए खेले गए दांव की काट भी सपाई दिग्गज नहीं ढूंढ पाए।

नतीजा यह रहा कि 03 महीने पहले आजमगढ़ की सभी 10 और रामपुर में विधानसभा सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली सपा उपचुनाव में हार के बाद लोकसभा में अब 03 सीटों पर पहुंच गई है। सन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरी सपा को आजमगढ़ और रामपुर की सीटों सहित 05 लोकसभा क्षेत्रों में सफलता मिली थी। मायावती 10 सांसद जिता लेने के बाद सपा को झटका देते हुए अलग हो गई थीं। इससे पहले सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भी सपा 05 सांसदों को ही जिता सकी थी। सन 2017 के विधानसभा चुनाव में भी 47 सीटों पर अटक गई सपा को सन 2022 में मार्च महीने में हुए विधानसभा चुनाव में भी सत्ता हासिल करने लायक सफलता नहीं मिली सकी।

कोर वोट बैंक में नहीं दिखा सपा के प्रति भरोसा 

बीते विधानसभा चुनाव में यूपी की सत्ता हासिल करने में चूकी सपा सन 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव के लिए खुद को बीजेपी के सामने सबसे दमदार पार्टी होने का दावा करते हुए राज्य की सियासत में गठबंधन के साथियों के साथ खम ठोक रही है, पर दोनों सीटों के नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि सपा के लिए यूपी में राह अब आसान नहीं है। एमवाई समीकरण यानी अपने बेस वोट बैंक मुस्लिम और यादव मतदाताओं में भी अब उसके लिए पहले जैसा रुझान नहीं दिख रहा है। सियासत में दम चुनाव नतीजों से ही पता चलता है। आजमगढ़ में मुस्लिम और यादव वोटर पूरी तरह से सपा के साथ नहीं रहे। रामपुर में भी यही हाल दिखा। आरोप सपा चाहे जो भी लगाए किंतु सच यही है कि दोनों ही सीटों पर उसका अपना समर्थक वोट बैंक पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए जोश के साथ नहीं उतरा। दोनों सीटों पर वोटिंग प्रतिशत बेहद कम रहा और वह भी तब जब कांग्रेस इन दोनों सीटों के उपचुनाव में उतरी नहीं, और मायावती ने रामपुर को छोड़कर पूरा ध्यान आजमगढ़ पर ही लगा रखा था। सपा का सीधा मुकाबला अपने गढ़ में बीजेपी के साथ था, पर वह अपने कोर वोट बैंक को साधकर यह संदेश नहीं दे सकी कि वही भगवा रथ को रोकने की ताकत रखती है और रणनीति भी। 

आजमगढ़ में 8,679 वोटों के अंतर से सपा चुनाव हारी  

रविवार को सामने आए चुनाव नतीजों सेे यह साफ हो जाता है कि आजमगढ़ में बीएसपी प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ‘हाथी’ लेकर निकले और अखिलेश की साइकिल को रौंदते हुए बीजेपी के कमल को खिलाने में मददगार बने। गुड्डू जमाली के साथ मुसलमानों ने जाना मुनासिब समझा और सपा उनकी पहली पसंद नहीं रही। नतीजा यह रहा कि बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ 8,679 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए। निरहुआ को कुल 3,12,768 यानी 34.39 प्रतिशत वोट मिले। सपा के धर्मेन्द्र यादव 3,04,089 यानी 33.44 प्रतिशत वोट ले पाए, जबकि गुड्डू जमाली ने 2,66,210 यानी 29.27 प्रतिशत वोट हासिल कर तीसरा स्थान पाया। कुल 14 प्रत्याशियों की मौजूदगी वाले इस उपचुनाव में 7,08,707 वोट डाले गए थे।

रामपुर में मुस्लिम वोटर का भरपूर साथ नहीं मिला आजम खां को 

रामपुर सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां का गढ़ है, यह पिछले कई चुनावों में साबित हो चुका है लेकिन इस उपचुनाव में आजम खां की पसंद पर उनके करीबी आसिम राजा को टिकट मिलने के बावजूद मुस्लिम बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में सपा को कामयाबी नहीं मिल सकी। यहां उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी 3,67,397 यानी 51.96 प्रतिशत वोट लेकर चुनाव जीत गए। सपा के आसिम राजा को उन्होंने 42,192 वोटों के अंतर से चुनाव हराया। कुल 07 प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में होने के बावजूद आसिम राजा को 3,25,205 यानी 46 प्रतिशत वोट ही मिल सके। इस सीट पर कुल 7,06,568 वोट डाले गए थे। 

अब और कठिन होगी अखिलेश के लिए यूपी की सियासत 

देश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में सपा की उपचुनाव में इस स्थिति पर एआईएमआईएम के चीफ असद्दुदीन ओवैसी ने अखिलेश की पार्टी पर सीधा हमला किया और ट्वीट कर कहा, ‘रामपुर और आज़मगढ़ चुनाव के नतीजे से साफ़ ज़ाहिर होता है कि सपा में भाजपा को हराने की न तो क़ाबिलियत है और ना क़ुव्वत। मुसलमानों को चाहिए कि वो अब अपना क़ीमती वोट ऐसी निकम्मी पार्टियों पर ज़ाया करने के बजाये अपनी खुद की आज़ाद सियासी पहचान बनाए और अपने मुक़द्दर के फ़ैसले ख़ुद करें।’ 

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी हमला बोला, ‘उपचुनावों को रूलिंग पार्टी ही अधिकतर जीतती है, फिर भी आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी ने सत्ताधारी भाजपा व सपा के हथकण्डों के बावजूद जो कांटे की टक्कर दी है वह सराहनीय है। पार्टी के छोटे-बड़े सभी जिम्मेदार लोगों व कार्यकताओं को और अधिक मजबूती के साथ आगे बढ़ना है।’ उन्होंने एक और ट्वीट कर कहा, ‘यूपी के इस उपचुनाव परिणाम ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि केवल बीएसपी में ही यहां भाजपा को हराने की सैद्धान्तिक व जमीनी शक्ति है। यह बात पूरी तरह से खासकर समुदाय विशेष को समझाने का पार्टी का प्रयास लगातार जारी रहेगा ताकि प्रदेश में बहुप्रतीक्षित राजनीतिक परिवर्तन हो सके।’ 

जाहिर-सी बात है कि आजमगढ़ और रामपुर में चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखने वाले अखिलेश यादव किस रणनीति के तहत मैदान में नहीं उतरे, ये तो वही जानें किंतु सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव सहित सैफई परिवार के तकरीबन सभी प्रमुख सदस्य और अन्य पार्टी नेता कोर वोट बैंक में भी जीत का भरोसा नहीं जगा पाए। रामपुर में भी आजम खां का करिश्मा नहीं दिखा। ऐसे में यूपी के सियासी रण में सन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार अजेय बनी बीजेपी को ट्वीटर और ट्वीट के जरिये नहीं बल्कि मैदान में उतर कर मुकाबला करके ही चुनौती देने का कौशल जिसमें होगा, वही सन 2027 में यूपी का सत्ता का प्रबल दावेदार होगा।

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