विश्वविद्यालयों को वैचारिक लड़ाई का स्थान नहीं बनना चाहिए : अमित शाह


 नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विश्वविद्यालयों को वैचारिक लड़ाई का मैदान नहीं बनना चाहिए। उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों का जिक्र करते हुए पहले की और मोदी सरकार की रक्षा नीति का फर्क भी स्पष्ट किया।

गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टी ‘स्वराज’ से ‘नव भारत’ तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को विचार आदान-प्रदान करने का मंच बनना चाहिए, वैचारिक लड़ाई का स्थान नहीं। रक्षा नीति पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से पहले भारत के पास कोई रक्षा नीति नहीं थी और अगर थी भी तो वह विदेश नीति की एक परछाई मात्र थी।

उन्होंने देश द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने दिखाया है कि उनके लिए रक्षा नीति का क्या मतलब है। शाह ने कहा कि पहले आतंकवादी हम पर हमला करने के लिए भेजे जाते थे और उरी तथा पुलवामा हमलों में भी ऐसा ही करने की कोशिश की गई, लेकिन हमने सर्जिकल स्ट्राइक और हवाई हमलों से दिखा दिया कि हमारी रक्षा नीति के क्या मायने हैं।

उन्होंने कहा कि देश के युवाओं को अपने अधिकारों के साथ-साथ देश और समाज के प्रति अपने दायित्व पर भी विचार करना चाहिए। कोई भी अधिकार बिना दायित्व के नहीं मिलता, जब हम अपने दायित्व की चिंता करते हैं तो उसके साथ हम किसी गरीब के अधिकार की रक्षा भी करते हैं।

अमित शाह ने कहा युवा विश्वविद्यालय में विचारधाराओं के संघर्ष की जगह विचार विमर्श पर ध्यान दें, क्योंकि किसी भी विचार और विचारधारा की स्वीकृति हिंसा और संघर्ष से नहीं बल्कि विचार विमर्श से ही आ सकती है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी और विश्वविद्यालय हमेशा से ही परिवर्तन के वाहक रहे हैं। सन 1975 में लोकतंत्र को बचाने में भी दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रमुख योगदान रहा है और 2014 से जो युग परिवर्तन की शुरुआत हुई है, उसकी वाहक भी दिल्ली यूनिवर्सिटी बने, मैं ऐसी शुभकामनाएं देता हूं।

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